“ग़ुस्ताख़-ए-नबी की क्या हो सजा, सर तन से जुदा सर तन से जुदा”।
यह देश
संविधान या कानून से नहीं बल्कि उस शरीया से चलेगा जो हिंसक भीड़ के दिमाग में चलता
है। संविधान और कानून तो काफ़िरों के लिए होता है जिसका पालन करते-करते अब वे इतने
भीरु हो चुके हैं कि किसी अन्याय का विरोध करने की उनमें जरा भी शक्ति नहीं बची।
आसमानी
किताब और हदीसों में किए गए उल्लेखों के आधार पर साद अशफाक अंसारी ने नूपुर शर्मा
का समर्थन किया तो पुलिस उन्हें उठा ले गयी जिससे हिंसक भीड़ ने यह संदेश ग्रहण
किया कि भारत में जो भी सत्य का समर्थन करेगा पुलिस उसे उठा लेगी? नूपुर
शर्मा से मुजरा करवाने, उनकी जिव्हा काटने, उनके साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म करने और उनका सिर काटने की घोषणा करने वाली आक्रामकता
पर शासन प्रशासन मौन है। अशफाक अंसारी को जेल में डाला जा सकता है, किंतु इन आक्रामक लोगों को नहीं। अब समझ में आ रहा है कि भारत में इस्लामिक
शासन कैसे स्थापित हुआ, हम इतिहास को पहले से भी बुरी स्थिति
में वापस आते हुए देख रहे हैं।
योगी और
हिमंता विस्वा शर्मा को छोड़ दें तो मोदी और संघप्रधान मोहन भागवत भी अराजक भीड़ को
यह संदेश देने में सफल रहे कि भारत में निरंकुश और क्रूर भीड़ को कानून से भयभीत
होने की आवश्यकता नहीं है, वहीं ये लोग यह संदेश देने में भी सफल रहे कि भारत में अब हिन्दुओं के लिए
कोई स्थान नहीं है। सात दशक के लम्बे विलम्ब के बाद ही सही किंतु अब सनातनी
भारतीयों को यह लगने लगा है कि भारत में सत्य और न्याय के लिए भी कोई स्थान नहीं बचा
है। ब्रिटिश सेना के सार्जेण्ट मोहनदास करमचंद ने अपने मालिक के प्रति वफ़ादारी
दिखाते हुये भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में जो हठजाल फैलाया उससे निर्मित विकृत
नीतियों से जर्जर हुए भारत के लोगों को भारतीयता की रक्षा के लिए आज भी यातनाएँ
सहनी पड़ रही हैं। भारत का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है!
कुवैत
में किसी भी प्रकार का प्रदर्शन प्रतिबंधित है इसके बाद भी अपनी आदत और प्रवृत्ति के
अनुरूप नियम-कानून को धता बताने वाले भारतीय मुसलमानों ने नूपुर शर्मा के विरुद्ध वहाँ
प्रदर्शन किया जिससे कुवैत सरकार ने उनके वीसा स्थायीरूप से निरस्त कर उन्हें वापस
भारत भेज दिए जाने के आदेश दे दिए हैं। अब कुवैत से आने वाली यह भीड़ भारत में दंगे
करने के लिए स्वतंत्र रहेगी। वास्तव में नूपुर शर्मा का नाम केवल उस विरोध के लिए प्तयोग
किया जा रहा है जिसका उद्देश्य भारत के सनातनियों के उन्मूलन के लिए प्रतिकूल स्थितियाँ
उत्पन्न करना है। यह सीधे-सीधे गजवा-ए-हिन्द है। मोदी और मोहन भागवत बिना युद्ध किए
हारने के लिए तैयार हैं। मोदी को दिया गया भारतीय जनता का इतना सशक्त समर्थन किसी काम
नहीं आया।
गहरी धुंध
में भाषा बदल रही है, पैमाने बदल रहे हैं और यह सब देखने वाले सनातनी भी स्वीकार करने लगे हैं कि
नूपुर का बयान विवादास्पद है, नूपुर से माफ़ी मँगवायी गयी जिससे
यह संदेश दिया गया कि नूपुर ने अपराध किया है। विभाजन के बाद विभाजन के अधिकांश समर्थक
पाकिस्तान नहीं गए और भारत में अपनी इच्छा से ही रह गए। किसी ने नहीं विरोध नहीं किया
कि विभाजन के बाद भी उनकी ऐसी इच्छा क्यों है? और अब वे कहने
लगे हैं कि जिन्हें उनकी “तहज़ीब पसंद न हो वे कहीं और चले जाएँ”, “हिन्दुओ! भारत छोड़ो”, “हम भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं
बनने देंगे”........। पाकिस्तान ले लेने और भारत के एक हिस्से को इस्लामिक मुल्क बना
लेने के बाद भी उनकी ऐसी ज़िद क्यों है? इस पर कभी कोई प्रश्न
नहीं पूछता बल्कि मोहन भागवत कहते हैं कि कलंक के काले पृष्ठों को दबा ही रहने दो,
भारत की उत्कृष्ट सभ्यता और सत्य को दफन ही बना रहने दो, हर मस्ज़िद में भारत को मत तलाशो।
मंदिर और
मस्ज़िद वे हथियार हैं जो आम जनता को पकड़ा दिए जाते हैं लड़कर मर जाने के लिए, इसके बाद
जो बचता है वह सत्ता का उपभोग करता है। सारे युद्ध गजवा-ए-हिन्द के लिए हैं जिसे लुंज-पुज
सत्ता के कारण सनातनी हारते जा रहे हैं। हमारा राजा हमारे शत्रुओं के साथ है।
पुरुषों
और बच्चों के बाद अब महिलाएँ भी नूपुर शर्मा के विरोध में (जो वास्तव में भारत का विरोध
है) सड़कों पर उतर आयी हैं। यह वह भीड़ है जो जिहाद के लिए कुछ भी कर सकने के लिए
रात-दिन तैयार रहती है। यह वह भीड़ है जो हिंसक दंगों में किशोर-किशोरियों और अबोध
बच्चों को भी हिंसक दंगों और आक्रामकता वाली कबीलाई सभ्यता के व्यावहारिक
प्रशिक्षण के लिए अपने साथ दंगों में ले कर आती है। जब मुस्लिम बच्चे यह प्रशिक्षण
पा रहे होते हैं तो मोहन भागवत मंदिर तोड़कर उनपर मस्ज़िद बनाने वाले मुसलमानों को
अपना भाई बता रहे होते हैं।
पहले भीड़
चाहती थी कि नूपुर को ग़िरफ़्तार कर उन्हें सजा दी जाय, अब
भीड़ की माँग बढ़ गयी है। निरंकुश भीड़ की नयी माँग है कि नूपुर शर्मा को भीड़ के
हवाले कर दिया जाय, वे ख़ुद उन्हें सजा देंगे। शायद वे तहर्रुश
गेमिया का ख़्वाब देखने लगे हैं।
भीड़ जब “जज”
बन जाती है और जज “मूकश्रोता” तो लोकतंत्र हार जाता है। भारत की हिन्दूविरोधी हिंसक भीड़ जज बन चुकी है,
लोकतंत्र बंदी बना लिया गया है और सत्य को जगह-जगह सरे आम फाँसी दी
जाने लगी है।
इस समय भारत
के किसी भी राजनैतिक दल के पास सत्य का समर्थन करने के लिए समय नहीं है। हर कोई
शतरंज खेलने में व्यस्त है।
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