दिनांक 22 जून 2022, दिन बुधवार को एक टीवी चैनल के एंकर ने भारत को एक नया भगवान प्रदान किया, भारत की जनता धन्य हुयी। एंकर जी ने घोषणा करते हुये बताया कि “शिवसेना के भगवान मुख्यमंत्री निवास “वर्षा” से निकल कर प्रस्थान कर चुके हैं और अब कुछ ही देर में “मातोश्री” पहुँचने ही वाले हैं, मातोश्री जो कि शिवसेना का मंदिर है, वहाँ शिवसैनिकों की भीड़ पहले से ही उनके स्वागत के लिए एकत्र हो चुकी है। शिवसेना के भगवान अब मुख्यमंत्री निवास में नहीं बल्कि अपने मंदिर में रहेंगे”।
मैं अचम्भित हूँ, टीवी
चैनल्स के एकंर्स दासत्व के ऐसे भाव और कलमतोड़ महिमामण्डन के शब्द कहाँ से लेकर
आते हैं! मैं इसे धूर्तता और लोकतांत्रिक अराजकता कहना चाहता हूँ जो वंशवाद को
स्थापित करने के लिए उर्वरक तत्व हैं।
भारतीय
लोग भगवान के बिना अपने आपको पंगु क्यों पाते हैं! यह एक ऐसी रुग्णता है
जो हमारे अंदर के दासत्व को प्रक्षेपित करती है। हम किसी को महिमामंडित करते समय
सारी मर्यादाएँ लाँघ जाते हैं। पहले हमने सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान बनाया
और अब उद्धव ठाकरे को शिवसेना का भगवान बना दिया है।
विख्यात
रंगनिर्देशक पद्मश्री बंसी कौल कहा करते थे कि “हमारे देश में व्यक्तियों को
संस्थाओं की तुलना में बहुत महत्व दिया जाता है। इससे संस्थाओं के विकास का रास्ता
अवरुद्ध हो गया है। व्यक्ति की आयु सीमित होती है किंतु संस्था अमर होती है”।
जब हम
व्यक्ति को महत्व देना प्रारम्भ कर देते हैं तो संस्था नेपथ्य में धकेल दी जाती है
जहाँ कालांतर में उसकी मृत्यु हो जाती है। व्यक्तिपूजा उन प्रतिभाओं की भी निर्मम
हत्या कर देती है जो बौद्धिक पूँजी के रूप में कभी चिन्हित तक नहीं हो पाती और
जिसके कारण समाज एवं देश को बौद्धिक सम्पदाओं से वंचित होना पड़ता है।
विकासोन्मुखी
देश के लिए आवश्यक राजनीति को रुग्ण करना हो और सभ्यता के लिए आवश्यक कला को
निर्जीव करना हो तो दासत्वभाव के साथ व्यक्तिपूजा प्रारम्भ कर दीजिए। किसी समाज पर
धूर्ततापूर्वक किए जाने वाले वैचारिक आक्रमण की इन चालों को समझना होगा।
हमने
जिसे भी भगवान बनाया वे सब विवादास्पद हो गये, उनकी महानता पर प्रश्नचिन्ह
लगने लगे। यदि हमने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और योगीराज श्रीकृष्ण को भगवान न
बनाया होता तो आज वे विवादस्पद न बना दिए गये होते, लोग उन
पर आधारहीन आरोप नहीं लगाते, उनके अस्तित्व को काल्पनिक नहीं
मानते, उनके जन्मस्थानों पर मुकदमें नहीं हुए होते और आज
उन्हें लेकर उनकी इतनी दुर्दशा न हुयी होती।
किसी भी
व्यक्ति की महानता उसकी मृत्यु के बाद एक ब्लैंक चेक होती है जिसे भुनाने के लिए
की जाने वाली छीना-झपटी उस महान व्यक्ति को केवल अपमानित ही करती है। सद्विचार अमर
होते हैं, व्यक्ति नहीं। भारतीय महर्षि अपने नाम को नहीं, विचारों
को प्रमुखता देते रहे, इसीलिए वेद अपौरुषेय हैं।
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