रविवार, 26 जून 2022

चिकित्सा और इन्टीलेक्चुअल ब्लेस्फ़ेमी

         सनातन परम्परा के महर्षि मानते हैं कि प्राकृतिक सिद्धांतों के साथ तालमेल बनाये रखते हुये मानवकृत तकनीक के सहयोग से चिकित्सा प्रणालियों को उपादेय बनाया जाना चाहिये किंतु दुर्भाग्य से कम से कम भारत में तो ऐसा कर पाने में हम असफल ही रहे हैं। इस असफलता का विश्लेषण ऐसे कटुसत्य को उजागर करता है जो हमारी नैतिकता और वैज्ञानिक सूझ-बूझ पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देता है।   

टीवी पर धुआँधार बहस करने वाले बुद्धिजीवी इस बात पर कभी कोई प्रश्न नहीं पूछते कि ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एण्टीबायोटिक्स और तमाम नयी-नयी औषधियों की बाढ़ के बाद भी हम संक्रामक रोगों पर विजय पा सकने में समर्थ क्यों नहीं हो पा रहे हैं? फ़ैटीलिवर, ओबेसिटी, डायबिटीज-2, नेफ़्राइटिस, ओवेरियन सिस्ट, एन्जायटी, डिप्रेशन और पार्किंसोनिज़्म से लेकर स्किन-डिसीज़ेस एवं हेयर ग्रेइन्ग एण्ड फ़ालिंग जैसी समस्याओं में निरंतर वृद्धि के कारणों पर किसी को चिंतन करने की आवश्यकता क्यों नहीं लगती!

उच्च श्रेणी के विशिष्ट चिकित्साकेंद्रों को छोड़ दें तो शेष चिकित्सा व्यवस्था किसी भी निष्ठावान चिकित्सक को विचलित कर सकती है।

खाद्य तेलों को रिफ़ाइन करने की औद्योगिक चालबाजी का उपभोक्ता की बायोलॉज़िकल आवश्यकताओं से कोई सम्बंध नहीं होता। तेल को लम्बे समय तक ऑक्सीडाइज़्ड होने से बचाया जा सके, केवल इसीलिए उसकी प्रकृति को ही बदल देना इस वैज्ञानिक युग में एक अपराध क्यों नहीं माना जाता? अल्कोहलयुक्त औषधियों को काँच की बोतलें के स्थान पर प्लास्टिक की बोतलों में क्यों रखा जाना चाहिए? माँग में भरे जाने वाले विषाक्त सिंदूर को प्रतिबंधित कर हल्दी-चूने के रोचना के उपयोग के बारे में स्त्रियों को क्यों नहीं जागरूक किया जाना चाहिए? एक्सपायरी दवाइयों के फ़ार्मेकोलॉज़िकल सत्य को छिपाते हुये उन्हें नष्ट कर देने के मिथ्या पाखण्ड पर कोई वैज्ञानिक परिचर्चा क्यों नहीं की जानी चाहिए? अमेरिका की FDA for the Department of Defense द्वारा एलोपैथिक औषधियों पर किए गए Shelf Life Extension Program की रिपोर्ट्स पर सार्वजनिक बहस क्यों नहीं की जाती? आयुर्वेदिक औषधियों के लेबल्स पर एक्सपायरी तारीख लिखने का पुष्ट वैज्ञानिक आधार क्या है? क्या एक्सपायरी दवाइयाँ वास्तव में जानलेवा होती हैं या यह भी मात्र एक औद्योगिक चालबाजी है? इन विषयों पर चर्चा इसलिए नहीं की जाती क्योंकि ऐसा करने से निरंकुश आर्थिक लाभों पर अंकुश लग जायेगा, उपभोक्ता जागरूक हो जाएगा और अरबों रुपयों का तमाशा बंद हो जाएगा।

     अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा एलोपैथिक औषधियों के Shelf Life Extension Program पर किए गये शोध के परिणाम का सार यह है कि 1- औषधि निर्माता द्वारा एक्सपायरी तिथि लिखकर रोगी को सुनिश्चित किया जाता है कि फ़लाँ तिथि के बाद औषधि के उपयोग से लाभ होने की गारण्टी नहीं है। यह निर्धारित अवधि तक किसी औषधि की गुणवत्ता को सुनिश्चित करती है, न कि उसकी मारकता या विषाक्तता को। 2- यदि औषधियों की पैकिंग और रख-रखाव अच्छा हो तो एक्सपायरी तिथि के कई साल बाद तक औषधियों का सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है। 3- कुछ औषधियों की कार्मुकता और प्रभावशीलता एक्सपायरी तिथि के बाद कम हो सकती है जिसे डोज़ बढाकर अपेक्षित लाभ के लिए प्रभावी बनाया जा सकता है। 4- पैकिंग खोल देने के बाद यदि औषधियों का उपयोग न किया जाय तो एक्सपायर हुये बिना भी कोई औषधि नमी आदि के कारण अनुपयोगी एवं हानिकारक हो सकती है। 5- तरल एवं इंजेक्टेबल औषधियाँ यदि अपना रंग बदल दें तो रासायनिक परिवर्तन के कारण वे कभी भी हानिकारक हो सकती हैं।  

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