रविवार, 26 जून 2022

पारिस्थितिकी हार रही है

         पर्यावरण और पारिस्थितिकी जैसे शब्द बौद्धिकभाषणों और पाठ्यक्रमों से निकलकर जब तक बाहर आएँगे तब तक सब कुछ बदल चुका होगा। विद्यार्थी इस विषय के प्रति गम्भीर नहीं हो पाते, वे केवल परीक्षा उत्तीर्ण भर करना चाहते हैं।

कुलाँचे भरती कौतुकीसभ्यता और संसाधनों की छीना झपटी के लिए होने वाले युद्धों ने पारिस्थितिकी को सर्वाधिक क्षतिग्रस्त किया है। चीन और अमेरिका जैसे “सभ्य माने जाने वाले असभ्य देश” पर्यावरण को प्रदूषित करने वालों में सबसे आगे हैं। इस दौड़ में भारत भी पीछे नहीं है। सिक्किम को छोड़ दें तो भारत का कोई भी प्रांत स्वच्छता के प्रति न तो जागरूक हुआ है और न गम्भीर। उत्तर के हिमांचल, उत्तराखण्ड और पञ्जाब तथा पूर्व के बंगाल, असम और मेघालय जैसे प्राकृतिकदृष्टि से रमणीय प्रांतों में भी स्वच्छता के प्रति उदासीनता कष्टदायी है। वह बात अलग है कि पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक बनावट कचरे को छिपाने का भरपूर प्रयास करती है।

मैदानी क्षेत्र के नगरों और महानगरों में साफ-सफाई के भरपूर नारों और गीतों के बीच अट्टहास करते कचरों के ढेर आज भी दिखायी देते हैं। कचरे के ढेरों को ढँक देने या स्थानांतरित कर देने से कचरा समाप्त नहीं हो जाता। मेरा आशय कचरे के वैज्ञानिक निस्तारण और पुनर्नवीनीकरण से है। जो लोग कचरे को आज भी नदियों के किनारे फेक रहे हैं या जला रहे हैं वे सारी योजनाओं और आदेशों को धता बताते हुये अपना व्यापार या नौकरी भर कर रहे हैं जिसके तरीके और मानक स्वयं उनके द्वारा तैयार किए जाते हैं। कस्बों से लेकर नगरों तक मांसविक्रेता जैव अपशिष्ट को कैसे नष्ट करते हैं, इसकी वास्तविकता को देखा जा सकता है। चिकित्सालयों में भी रंग-बिरंगे कचरे के डिब्बों की तब तक कोई सार्थकता नहीं है जब तक कि जैव-चिकित्सा अपशिष्टों को वैज्ञानिक तरीके से नष्ट नहीं किया जाता। यदि सारा अपशिष्ट अंततः कचरे की गाड़ी में ही डाल देना है तो कचरों के इस दिखावटी सेग्रीगेशन से कौन सा उद्देश्य पूरा होने वाला है!

सरकारी आदेशों के अनुसार चिकित्सालयों के लिए जैवचिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन अनिवार्य है। चिकित्सालयों द्वारा सरकार को जैव अपशिष्ट प्रबंधन की जानकारी दी जाती है, किंतु यह बिल्कुल आवश्यक नहीं है कि सारी जानकारी सही ही हो। जैव-अपशिष्ट प्रबंधन एक ऐसा उपक्रम है जिसके लिए ईमानदारी से रिपोर्टिंग करके कोई अपनी नौकरी से हाथ नहीं धोना चाहता। जब नौकरी का एकमात्र उद्देश्य वेतन लेना हो और सत्य जब संकट को आमंत्रित करने वाला हो जाय तो झूठ के साम्राज्य को कोई चुनौती नहीं दे सकता।

4 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.