बुधवार, 8 जून 2022

मुख में राम बगल में मौला

            माथे पर काली बिंदी और कांधे पर काला उत्तरीय देखते ही आजमगढ़ वाले क्रांतिकारी बाबा की स्मृति में रामलीला में देखी रावण की वेशभूषा का दृश्य जीवंत हो आता है। अहमदाबाद वाली भावना बेन बताती हैं, काला रंग तो राक्षसों और इस्लामिक स्टेट वाले जिहादियों का प्रिय रंग है। राम कथा में शक्ति, हिंसा और शोक के रंग का क्या औचित्य!

 .किंतु कुछ तो औचित्य होगा तभी तो सादी सफ़ेद बण्डी या कुर्ता, सफ़ेद धोती, कंधे पर काला उत्तरीय (दुपट्टा) और मस्तक पर काली बिंदी वाले शायरी के शौकीन बाबाजी राम कथा सुनाते हैं। भारत में कथा सुनाना कोई जागरण नहीं बल्कि सैकड़ों करोड़ सालाना कमाई वाला एक व्यवसाय है। देश से बिदेश तक उन्होंने न जाने कितने कथाप्रेमियों को राम की कथा सुनायी। काले उत्तरीय वाले बाबा दिग्दिगंत में प्रसिद्ध हो गये, और एक दिन सनातन का उपदेश करते-करते अली-मौला... अली-मौला गाते हुये जग्गी वासुदेव की तरह नाचने लगे।

राम कथा में अकर्मण्यता और नपुंसकता का रस घोलने के लिए संगीतकार गीत गाते हैं, वाद्ययंत्र बजाते हैं। उसकी कथामंडली के संगीतकारों में प्रसिद्ध फ़िल्मी कलाकार होते हैं, कथा राम की होती है, बात गली-गली में मस्ज़िद की होती है और गीत होता है – “अली मौला... अली मौला...

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की कथा सुनाते-सुनाते एक दिन कथावाचक के ज्ञानचक्षु उन्मीलित हुए, और वे इस्लाम से इतने प्रभावित हुए कि अपनी कथामण्डली के मुस्लिम तबलावादक को अपनी बेटी का हाथ सौंप कर धन्य हो गए।

आपको याद है न! वह गुजराती, “ईश्वर अल्ला तेरो नाम” गाया करता था। एक दिन उसने सूफ़ियाना गाना गाते-गाते भारत का एक बड़ा हिस्सा अल्लाह के बंदों को दे दिया। अल्लाह के बंदे आबाद हो गए और ईश्वर के बंदे उसी दिन से भाड़ में तिल-तिल कर जलने लगे।

आजमगढ़ि क्रांतिकारी के ये शब्द ट्रिलियन डॉलर कीमत के हैं –कोई अध्यात्मिक काफ़िर जब प्रसिद्ध हो जाता है तो उसके भीतर से सेक्युलरिज़्म प्रकट होता है और तब उसका आराध्य अली मौला हो जाता है

2 टिप्‍पणियां:

  1. भिगो भिगो कर दिया है । सटीक 👌👌👌 इतनी खरी बात लिखने के लिए बजी हिम्मत होनी चाहिए । गुजरात वाले ने तो असल गीत ही बदल दिया ।

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    1. धन्यवाद! यह साहस आप जैसे सुधी पाठकों से मिलता है जो हमारी द सो काल्ड "बकवास" पर चिंतन-मनन करते हैं।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.