मंगलवार, 7 जून 2022

“ताल का पानी तालय जाय घूम-घूम पातालय जाय”।

         आज बहुत दिन बाद मोतीहारी वाले मिसिर जी से सम्पर्क हो सका तो उन्होंने समसामयिक घटनाओं पर टिप्पणी करते हुये बच्चों की तरह यही पंक्ति गा कर सुना दी। रीढ़विहीन समाज की सनातन नारी को कुछ शताब्दियों पहले बुरका ओढ़ना पड़ा था पर अब उसने बुरका उतारकर घर वापसी का साहस करना प्रारम्भ कर दिया है। घर वापसी का यह निर्णय न तो तलवार के भय का परिणाम है, न किसी लोभ का परिणाम है, और न किसी परामर्श की प्रेरणा का परिणाम है। यह प्रज्ञाचक्षुओं के स्वतः उन्मीलित होने का परिणाम है, यह तर्कशक्ति से उत्पन्न सत्य का अन्वेषण है, यह ज्ञान के स्वाभाविक प्रवाह का परिणाम है, यह सनातन की स्वीकृति है।

मिल्लम के पास एक बुग्याल में अस्थायी बसेरा कर रहे मोतीहारी वाले मिसिर जी ने नारी शक्ति के इस साहस को अनुकरणीय मानते हुये उन सभी के श्री चरणों में विनम्र प्रणाम करने का संदेश भेजा है। वे मानते हैं कि यही वह नारी शक्ति है जिसकी भारत को आवश्यकता है।

बहुत सी सनातनी कन्याएँ समय-समय पर विभिन्न कारणों से इस्लाम स्वीकार करती रही हैं जबकि आजकल लाखों कन्याएँ हिजाब से जिहाद कर घर वापसी कर रही हैं। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब भारतीय समाज के एक हिस्से में परिवर्तन की तरलता है और दूसरे हिस्से में स्थिरता की कट्टरता है, नूपुर शर्मा से दुष्कर्म करने और उनकी हत्या करने पर एक करोड़ के पुरस्कार की घोषणा है तो वहीं पौरुषविहीन पाखण्डियों द्वारा भेड़ियों के सामने मरने के लिए छोड़ दी गयी नुपुर के समर्थन में दहाड़ती हुयी वे लड़कियाँ हैं जिन्होंने अभी-अभी घर वापसी की है या मुसलमान रहते हुये भी सनातन को स्वीकारने का साहस किया है।

एक चौड़ा सीना है जो अन्याय के सामने अक्सर मिमियाने लगता है। कुछ सुकुमारियाँ हैं जो हर अन्याय के सामने दहाड़ने लगती हैं। एक जनवरी 2050 की सुबह भारत को इस्लामिक मुल्क होने का ऐलान करने वाले हैरत में हैं कि उनकी कौम की इन लड़कियों को हो क्या गया है! कट्टरपंथियों की बेटियों ने मिमियाते हुये शेरों के सामने बहुत बड़ा दर्पण रख तो दिया है पर मिमियाते हुये शेरों की ज़िद है कि वे कभी आइना देखेंगे ही नहीं। 

शाहीन बाग वाली खातूनों की तुलना में अम्बर जैदी जैसी लड़कियों के चेहरे की सौम्य दीप्ति और डिवाइनिटी क्या हमें उनके सामने नतमस्तक होने के लिए आकर्षित नहीं करती!

मिसिर जी ने फोन पर गीत गाना प्रारम्भ कर दिया है – “कागज की एक नाव बनाई, छोड़ी गहरे जल में। पापी पार उतर मुसकाये, सच्चे डूबे जल में, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में॥ सत्ता हो गयी कतर की दासी, चूहे बिल में राजी, मुखड़ा क्या देखे दर्पण में...”। 

3 टिप्‍पणियां:

  1. खरी खरी ।। सरकार से उम्मीदें टूटने जैसा हो रहा है । राजनीति क्या करवा रही है पीछे की बातें आम जनता नहीं जानती । लेकिन नूपुर के निलंबन से मन दुखी है ।।

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    1. नूपुर ने लिखी हुई बात का उल्लेख भर किया तो हंगामा हो गया पर जब वे लोग दुर्गा, सरस्वती और शिव पर अश्लील टिप्पणी करते हैं तो यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती, क्योंकि हम काफिर हैंंऔर हमें जीने का कोई हक नहीं है, यह किस तरह की धर्मिक सोच है! इस तरह की फ़िल्टर्ड और निरंकुश व्यवस्था सनातन समाज को समूल नष्ट कर देगी।

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    2. सहिष्णुता का फ़लसफ़ा –
      - “हाजत में ख़ुश्बू, हगने में बद्बू” का फ़लसफ़ा उनका मौलिक अधिकार है।
      - “इनका विरोध” विविधता की ख़ूबसूरती, “उनका विरोध” शैतान की बदसूरती।
      - नबी की शान में गुस्ताख़ी ना-काबिले बर्दाश्त, दुर्गा की नग्न मूर्ति, कृष्ण और शिव की अश्लील व्याख्या उनका अधिकार।
      - बलात्कार और कत्ल की धमकी जायज, बचाव की गुहार नाजायज।
      - गंगा-जमुनी तहज़ीब में मोहन भागवत का तड़का – “गली-गली में सीता है, बच्चा-बच्चा राम है, नूपुर शर्मा दुश्मन है, हर मुस्लिम मेरा भाई है”।
      - किसी का झण्डा काला, किसी के कपड़े काले, किसी का उत्तरीय काला, किसी की टोपी काली... काला रंग चिंतनीय है।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.