शुक्रवार, 10 जून 2022

जुम्मे की नमाज और पत्थर

            जुम्मे की नमाज के बाद पत्थरबाजी, हिंसा और आगजनी अब परम्परा बनती जा रही है। यह परम्परा शहर-दर-शहर फैलती जा रही है। ओवेसी बंधु राम, लक्ष्मण, हनुमान और दुर्गा आदि के नाम को भी मनहूस बताते हैं जिसे कभी हेट-स्पीच नहीं माना जाता रहा। पिछले लगभग दो दशकों से भारत की जनता को परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से यह बताया जाता रहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इस्लामिक धमकियाँ, निजाम की हुकूमत और हिन्दुओं की सामूहिक हत्या जैसी बातों का ऐलान करना, साथ ही मनुस्मृति को जूतों तले रौंदना संविधान के अनुसार अनुचित नहीं है, यदि अनुचित माना जाता तो उन पर कठोर कार्यवाही की गयी होती और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति थम चुकी होती। यह भी बड़े जोर-शोर से बताया जाता रहा है कि क्रिटिक के नाम पर देवी-देवताओं के बारे में अश्लील टिप्पणियाँ और कला के नाम पर अश्लील चित्रकारी करना गंगा-जमुनी तहज़ीब और विविधता के लिए आपत्तिजनक नहीं है, यदि यह आपत्तिजनक माना गया होता तो इस पर कार्यवाही हुयी होती। पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा यह भी बताया गया कि इस देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है, यदि यह न बताया गया होता तो रेलवे प्लेटफ़ॉर्म, पार्क, सड़क और मंदिर परिसर जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण कर मजार, दरगाह और मस्ज़िदें नहीं बनायी गयी होतीं।

यह कभी नहीं बताया गया कि इस देश के संसाधनों पर हिन्दुओं का पहला अधिकार क्यों नहीं है? यह कभी नहीं बताया गया कि गाली और अपमानजनक व्यवहार उनके लिए हेट-स्पीच क्यों नहीं है और प्रतिवाद करना हमारे लिए हेट-स्पीच क्यों है? यह कैसा देश है? हम कैसे देश के निवासी हैं?

संविधान की पुस्तक में राम का चित्र है, जिनका नाम भी लेना विधायक अकबरुद्दीन ओवेसी को मनहूस लगता है। कोई यह नहीं बताता कि राम के नाम को मनहूस कहने का अर्थ संविधान को भी मनहूस बताना है। भारत के सनातनी यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग पैमाने क्यों हैं?

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पैतृक गाँव में धार्मिक सौहार्द्य ख़राब होने की आशंका के कारण दुर्गा पूजा प्रतिबंधित होती है किंतु आये दिन शुक्रवार को नमाज के बाद होने वाली पत्थरवाजी को रोकने के लिए सामूहिक नमाज को प्रतिबंधित करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अराजकता को नियंत्रित करने के लिए सत्ता का यह कैसा प्रबंध है? इसका उत्तर मोदी और मोहन भागवत के पास नहीं, किंतु सनातनियों के पास है जो उचित समय पर बताया जाएगा।

ना ना, इसे अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध नहीं कहते

पश्चिम बंगाल में चुनाव के समय और बाद में बड़े पैमाने पर हुयी हिंसा के बाद भी राष्ट्रपती शासन नहीं लगाए जाने से उत्साहित अराजक तत्वों के हौसले और भी बुलंद हुए हैं। यही कारण है कि हनुमान चालीसा पढ़ने का संकल्प करने पर राणा दम्पति को जेल की सजा काटनी पड़ती है, किंतु नूपुर शर्मा के साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म करने का ऐलान करने वाले को पकड़ा भी नहीं जाता। हेट-स्पीच की सिलेक्टिव परिभाषाओं और कानूनी कार्यवाहियों के बाद भारत की सनातनवादी हिन्दू जनता के सामने मौनधारण कर लेने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं बचता। क्या भारत का लोकतंत्र अब इसी तरह चलेगा? एक ब्रिटिश सार्जेण्ट की मनमानी और हठों से हुये परिवर्तनों के परिणाम भारत की जनता को न जाने कितनी सदियों तक भोगना पड़ेगा, और अब हिन्दुत्व के ठेकेदार भारत के वर्तमान बंदी बनाने और भविष्य को पूरी तरह समाप्त कर डालने की राह पर चल पड़े हैं।  

योगी के कठोर शासन के बाद भी आये दिन उत्तर-प्रदेश में नई-नई हिंसक चुनौतियों का सिर उठाना क्या संकेत करता है, इसका यदि सही उत्तर दिया जाय तो उसे हेट-स्पीच मानकर कानूनी कार्यवाही होने का ख़तरा है। तमसोमा ज्योतिर्गमय अब भारत का आदर्श वाक्य नहीं रहा। हमें प्रकाश से अंधकार की ओर चलने के लिए बाध्य किया जा रहा है। भारत की संस्कृति और अस्तित्व को समाप्त करने के लिए हिन्दुओं के स्वयंभू ठेकेदार पूरे जोश में हैं।

भारत में धर्मांतरण की स्वतंत्रता है किंतु घर वापसी पर आपत्ति है। घर वापसी के लिए सहयोग करने वाले स्वामी जीतेंद्रनारायण जैसे संतों को हत्या करने की धमकी दी जा रही है। किसी की हत्या की धमकी और सामूहिक यौनदुष्कर्म करने वाले के लिए करोड़ों के इनाम के घोषणा न तो हेट-स्पीच है और न आपसी सौहार्द्य समाप्त करने का कारण है। घरवापसी करने वाले एक्स मुसलमान युवकों और लड़कियों को खुले आम हत्या की धमकी देने वालों पर कोई कार्यवाही न होना इस बात की घोषणा है कि भारत में मुसलमानों को हर तरह की छूट है जबकि सनातनियों को आत्मसम्मान से जीने का कोई अधिकार नहीं है।

भारत के सनातनियों को भारत की अखण्डता, सम्प्रभुता और सांस्कृतिक सुरक्षा के लिए एक सशक्त राजनीतिक विकल्प का तुरंत निर्माण करना होगा।  

फ़ैक्ट चेक में मिलावट

विषय था ज्ञानवापी परिसर में प्राप्त शिव मंदिर के साक्ष्यों का जिसमें अन्य सारे महत्वपूर्ण साक्ष्यों को पीछे धकेलते हुये सारी चर्चा को केवल शिवलिङ्ग पर ही केंद्रित क्यों किया जाने लगा, हम यह आज तक नहीं समझ सके। टीवी चैनल्स ने सनसनी फैलाने के लिए उद्देश्यहीन डिबेट्स आयोजित करनी प्रारम्भ कीं जिससे पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को और हवा मिलने लगी। जिन्हें लिङ्ग का अर्थ भी नहीं पता वे विमर्श में साधिकार सम्मिलित हुये और ताल ठोककर शिवलिंग के बारे में अश्लील एवं अपमानजनक टिप्पणियाँ करनी शुरू कर दीं। दो पीढ़ी पूर्व हिन्दू से मुसलमान बने तसलीम रहमानी ने आग लगायी जिस पर प्रतिक्रिया करते हुए नूपुर शर्मा ने कुरान के तीन उदाहरणों का उल्लेख किया। पहला था छह साल की आयशा से बावन साल के नबी का निकाह और नौ साल में शादी। दूसरा था – धरती का चपटा होना, और तीसरा था- उड़ने वाले घोड़े का उल्लेख। इन तीनों बातों का उल्लेख कुरआन में किया गया है, इसके बाद भी नूपुर पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर उनके साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म करने, ज़ुबान काटने और सिर काट कर लाने वाले लोगों को कई व्यक्तियों एवं मुस्लिम संगठनों ने एक-एक करोड़ के इनाम का ऐलान कर दिया। एक करोड़ के इनाम का ऐलान करने वालों में अधिवक्ता अली अब्बासी, भीम पार्टी के प्रमुख नवाब सतवंत तंवर और ओवेसी की पार्टी भी सम्मिलित है।

जिहादी वातावरण की घात लगाकर बैठे एक फ़ैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर ने इस विवाद में घुसपैठ की, बहाना किया फ़ैक्ट चेक का और कर दी मिलावट अपने मिशन की। मोहम्मद जुबैर ने बड़ी चतुराई दिखाते हुये नूपुर शर्मा के साथ तसलीम रहमानी की डिबेट के कुछ अंशों को फ़ोर्टीफ़ाइड करते हुये मुस्लिम देशों में हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा फैलाने की लॉबिंग की और सफल हुआ। इसके बाद दंगों और धमकियों का एक दौर शुरू हुआ जिसके शोर शराबे में फ़ैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर और आग लगाने वाले तस्लीम रहमानी अद्भुत तरीके से मंच से अदृश्य हो गये जबकि नवीन ज़िंदल नेपथ्य में चले गये और नूपुर शर्मा को खलनायिका बनाकर प्रस्तुत कर दिया गया। भारत सरकार ने नूपुर के प्रतिक्रियात्मक वक्तव्य को हेटस्पीच माना और उन पर पार्टी से निलम्बन की कार्यवाही कर दी, जबकि भीम सेना के चीफ़ सतवंत तंवर द्वारा नूपुर के बारे में कही गयी तमाम आपत्तिजनक और अपमानजनक बातों पर कार्यवाही की अभी तक आवश्यकता नहीं समझी गयी। भारत साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण, हिंसा और विद्वेष की आग में जलने लगा है। कई शहरों में शुक्रवार की नमाज के बाद पथराव होने लगे हैं। नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के साथ-साथ अन्य कई लोगों पर कार्यवाहियाँ शुरू कर दी गयी हैं, सिवाय उन लोगों के जो इस काण्ड के मुख्य खलनायक हैं। विश्वगुरू बनने का दावा करने वाले भारत को कतर जैसे देशों के सामने झुककर भारत के स्वाभिमान की हत्या कर देने के लिए तैयार होना पड़ा। रण में शौर्य प्रदर्शित करने के आदर्श वाला भारत रणछोड़दास बन गया।

चौथे स्तम्भ की भूमिका

पत्रकारिता के नाम पर वक्ता की रक्षात्मक प्रतिक्रिया को विवादास्पद कहने का चलन भारत में स्थापित हो चुका है। सुलझाने के स्थान पर उलझाने वाले इस मंत्र को जपने वाले पत्रकारों की बल्ले बल्ले।

कई टीवी चैनल्स किसी भी नेता या संत के वक्तव्य को अविवादित होने पर भी विवादित कहने का शौक करते रहे हैं। नूपुर शर्मा का वक्तव्य रक्षात्मक प्रतिक्रिया थी जिसे किसी भी कोण से विवादास्पद नहीं माना जा सकता किंतु कई टीवी चैनल्स यहाँ तक कि जी टीवी के सुधीर चौधरी भी उनके वक्तव्य को “विवादास्पद बयान” बताने में संकोच नहीं करते।

शिव के लिए मुस्लिम स्कॉलर के आपत्तिजनक वक्तव्य पर नूपुर शर्मा के आयशा के निकाह व शादी के उद्धरण के साथ प्रतिक्रियात्मक वक्तव्य को विवादास्पद बताने वाले टीवी चैनल्स, राजनेताओं और मुस्लिम स्कॉलर्स को इस्लामिक जगत में प्रोत्साहित किया जा रहा है। आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की माँग है कि नूपुर शर्मा का निलम्बन पर्याप्त नहीं, उन पर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए। कुछ लोग चाहते हैं कि उन्हें तुरंत फाँसी दी जानी चाहिए। कुछ लोग चाहते हैं कि नूपुर शर्मा को उनके दरबार में नाचने के लिए पेश किया जाना चाहिए। कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने नूपुर शर्मा को उनके साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म करने एवं हत्या कर देने की धमकियाँ दीं जिन पर तत्काल किसी कार्यवाही की आवश्यकता नहीं समझी गयी। आनन-फानन में कतर, कुवैत, ईरान, सऊदी अरब, बहरीन, यूएई, ओमान, इण्डोनेशिया, ईराक, मालदीव, जॉर्डन, लीबिया, अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान आदि 57 सदस्यीय इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने प्रकरण को जाने- समझे बिना ही भारतीय राजदूतों को बुलाकर अपना विरोध प्रकट किया।  

मुम्बई में रज़ा अकादमी ने नूपुर के विरुद्ध एफ़ आई आर दर्ज़ की। महाराष्ट्र की टीपू सुल्तान पार्टी द्वारा भी एक एफ़आईआर दर्ज़ की गयी। अलकायदा ने दिल्ली और मुम्बई पर आत्मघाती हमले की धमकी दी और दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा धमकियों और विरोधों का दौर शुरू हो गया। इस बीच मानवतावादी और पाक-साफ विचारधारा वाली गिनी चुनी मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों द्वारा नूपुर शर्मा का जोरदार समर्थन करते हुये उनकी बेगुनाही के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किए गये किंतु इस सारे हंगामे के बीच उनकी आवाजें अधिक प्रभावी नहीं हो सकीं। हमें भी लगता है कि अब यह मामला सुनवायी के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना ही चाहिए जिससे सारे फ़ैक्ट्स सामने आ सकें और दोषियों को दंडित किया जा सके। यूँ भारत का मुसलमान इतने से भी संतुष्ट नहीं है वह नूपुर शर्मा को ख़ुद अपने हाथों से फ़ाँसी की सजा देना चाहता है। ये वही मुसलमान हैं जो मोहन भागवत के भाई हैं।   

हामिद अंसारी का कच्चा चिट्ठा – Mission R&AW (लेखक -आरके यादव, पूर्व अधिकारी रा)

दस साल तक भारत के उपराष्ट्रपति रहे, तीन साल तक संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रहे, कई देशों में भारत के राजदूत और विदेश सेवा के अधिकारी रहे हामिद अंसारी की भारत के प्रति निष्ठा पर प्रश्न नहीं उठाये जा रहे बल्कि भारत के प्रति विश्वासघात के प्रमाणों को सार्वजनिक किया जा रहा है। यह आवश्यक है, भारत के लोगों को यह जानने का अधिकार है कि उनके देश की बागडोर कैसे लोगों के हाथों में रही है। विभिन्न सेवाओं और राजनैतिक दायित्वों से मुक्त होने के बाद हामिद अंसारी भारत विरोधी आतंकी संगठनों के समारोहों में भाग लेने के लिए जाने जाते हैं। ईरान में भारत के राजदूत रहने की अवधि में हामिद अंसारी ने बड़ी क्रूरतापूर्वक भारतीय अधिकारियों को शारीरिक यंत्रणाएँ दिलवाने में ईरान सरकार के प्रतिनिधि की तरह कार्य किया। हामिद का इस्लामिक और पाकिस्तान के प्रति प्रेम के साथ-साथ भारत के प्रति द्वेषभाव अब और भी खुलकर सामने आने लगा है। भारत और भारत के बाहर भी इतने महत्वपूर्ण पदों पर दीर्घकाल तक हामिद अंसारी जैसे भारत विरोधी व्यक्ति का बने रहना भारत की राजनीति में विश्वासघाती तत्वों की मजबूत जड़ों के अस्तित्व का एक नमूना मात्र है।   

2 टिप्‍पणियां:

  1. समसामयिक और आँख खोलने वाली पोस्ट ।।

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    1. आभार! हम प्रतीक्षा कर रहे हैं कि प्रकृति की अक्षय ऊर्जा की स्रोत नारीशक्ति "सत्य" के साथ खड़ी होने के लिए सामने आएगी। पुरुषों का शिखण्डत्व हमें निराश करता है। देश और समाज को इनके भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। सत्य हो, संस्कृति हो, सभ्यता हो या शक्ति हो... इन सबका स्रोत और प्रवाह तो नारी शक्ति के ही कारण है न! बात नूपुर की नहीं उस सत्य की है जिसे झूठ बनाकर स्थापित कर दिया गया है और एक गहरी ख़ामोशी छायी हुयी है। नूपुर अब न्याय और सत्य की प्रतीक बन चुकी है।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.