शनिवार, 11 जून 2022

झूठ की प्राणप्रतिष्ठा

-       उन्होंने झूठा आरोप लगाया, उसकी पुष्टि में कुछ झूठ और बोले, वे झूठ बोलते ही गये, बोलते ही गये और मात्र कुछ ही घण्टों में उनका झूठ स्थापित हो गया। जो लोग नूपुर शर्मा के पक्ष में खड़े थे उनकी भाषा में भी स्थापित झूठ का प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगा। अब भाषा कुछ यूँ होती है- “नूपुर शर्मा के विवादास्पद बयान पर हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा....”, “उन्होंने ग़लती की तो उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया और एफ़आईआर भी दर्ज़ हो गयी है, अब आप और क्या चाहते हैं”?

-       जब हमने अवैध कब्जा किया था उसी समय हमें क्यों नहीं रोका, अब किसी के आशियाने को गिराने का आपको कोई हक नहीं बनता –बड़ा ओवेसी।

-       दंगों के आरोप में जिन्हें जेल में बंद किया गया है उन्हें मुआवज़ा दो –एक गांधीवादी मज़हबी चिंतक

-       दंगाइयों से मुकदमे वापस लो, नूपुर शर्मा को हमारे हवाले करो –अमनचैन वाला

-       नूपुर नचनिया को हमारे सामने पेश करो, हम उससे मुजरा करवाएँगे –नवाब सतवंत, भीमसेना 

-       भाजपा के प्रवक्ता ने हेट-स्पेच की जिससे आपसी सौहार्द्य खराब हुआ और हिंसा हुई, हिंसा और दंगों के लिए भाजपा उत्तरदाई है- ममता

-       सौ-दो सौ साल बाद जब भी हमारी हुकूमत आएगी तब हम सारे मंदिर तोड़ देंगे –ज्ञानी स्कॉलर न. एक

-       नूपुर ने मुल्क में गृहयुद्ध शुरू करवा दिया है – ज्ञानी स्कॉलर न. दो

-       “अँधेरा कायम रहे हमेशा” –मोतीहारी वाले मिसिर जी (उन्होंने यह वाक्य किसी सीरियल से चुराया है)

तैयारी...

-       जब दंगाई तलवारें, हैण्ड ग्रेनेड, पेट्रोल बम और तमंचे लेकर हमारे घर को घेर लेंगे तो हमारे पास आत्मरक्षा का सहारा होगी झाड़ू, जिससे हम बिल्ली भगाते हैं।

-       उनके पास हथियार हैं, हमारे पास दो गाल हैं।

-       हम उनसे कहेंगे कि यदि तमाचे नहीं मारना चाहते तो कोई बात नहीं, हैण्ड ग्रेनेड हमारे पर गाल पर चलाओ, तमंचे की गोली हमारे गाल पर मारो, तलवार का वार हमारे गाल पर करो। ये गाल इसीलिए बनाए गये हैं।  

-       जब तक भारत पर इस्लामिस्तान का परचम नहीं लहराने लगेगा हम नहीं मानेंगे कि गजवा-ए-हिन्द शुरू हो चुका है।    

तुम्हें अभी भी नहीं दिखाई दे रहा कि पश्चिम बंगाल में ममता के जीवित रहते कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता।

यह सरासर झूठ है कि ममता प.बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। ममता के पास प.बंगाल के तीन पद हैं - राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनापति। सेक्युलर हिन्दू, मज़हबी स्कॉलर, मज़हबी नेता और स्वतंत्र टिप्पणीकार अजेय होते हैं। वें दुनिया की सारी ताकतों से ऊपर होते हैं। महबूबा एक ऐसा दुर्लभ फ़ीमेल प्राणी होता है जिससे भारत की सत्ता बहुत डरती है और जिसके सारे अपराध घटित होते ही तत्क्षण पुण्य में ट्रांसलेट हो जाया करते हैं।  

प्रयाग से एक रिपोर्टिंगसमय- दंगे की अगली सुबहदिप्रनांक 11.06.2022

सूनी सड़क के किनारे बंद दुकानों के सामने गज़ब की बॉडी कैमिस्ट्री के मालिक स्थानीय दो अधेड़ व्यक्ति पूरी निश्चिंतता के साथ बैठे हैं, एक के मुँह में पान है। दोनों के चेहरों पर कमाल का आत्मविश्वास है। खोजी पत्रकार और दोनों नागरिकों के बीच वार्तालाप प्रारम्भ होता है –

पत्रकार– कल इसी मोहल्ले में दंगा हुआ था, आज कैसा माहौल है?

अधेड़ न.एक – (सड़क पर दूर कुछ देखते हुये) माहौल कइसा है, अच्छा है, अउर कइसा है।

पत्रकार – दंगाई कौन थे, कहाँ से आए थे?

अधेड़ न. दो – (बिना पत्रकार की ओर देखे हुए) हम क्या जानें, हमें नहीं पता।

पत्रकार – आपको डर नहीं लगता?

अधेड़ न.एक – (बिना पत्रकार की ओर देखे हुए) डर काहे का! नाहीं... हमें कोई डर-वर नहीं लगता।

पत्रकार – आप दंगाइयों को पहचानते हैं?

अधेड़ न. दो – (झल्लाते हुये) बताया न! हमें नहीं मालुम, अउर क्या बतावयँ।

प्रयागराज के दोनों अधेड़ों की बॉडी कैमिस्ट्री ने वह सब कुछ बता दिया जिसे उन्होंने बड़ी ग़ुस्ताख़ी और आत्मविश्वास के साथ छिपाने की भरपूर कोशिश की थी। अब आगे का काम पुलिस का होना चाहिए। 

राजनीति का कटु सत्य –

“हे राजन! जो सत्ता दूरदर्शी नहीं होती, जो आसन्न संकट को नहीं पहचान पाती या जो जानबूझकर गंभीर संकटों की उपेक्षा करती है, उसका  पराभव अवश्यम्भावी है। जिस देश के नागरिक अपने ही देश के सुरक्षा बलों पर आक्रमण करते हैं ...बारम्बार करते हैं, करते ही रहते हैं, और जिन्हें कोई रोक नहीं पाता, वे ही एक दिन उस देश के मालिक बनते हैं। जो समाज सत्य का समर्थन नहीं करता, जो अपनी रक्षा करने में असमर्थ होता है उसे या तो दास बनना होता है या फिर सदा के लिए समाप्त होना होता है”।

नकार की प्रचण्डता 

संविधान, कानून, शासन और सत्ता के तंत्र आपको अनुशासित, सभ्य और व्यवस्थित किंतु भीरु बनाते हैं। जब आप इन सभी को को नकार देते हैं तो आप निरंकुश, असभ्य और अनियंत्रित किंतु प्रचण्डरूप से शक्तिशाली हो जाते हैं। आज देश भर में जो आग लगी हुयी है वह इसी नकार को नकारने का परिणाम है। हमने भीमराव आम्बेडकर, सरदार पटेल और सुभाषचंद्र बोस की दूरदर्शिता का सम्मान नहीं किया और 1947 से ही भारतीय समाज को निरंतर भाड़ में जलने के लिए झोंकते रहे। नकार की प्रचण्डता सब कुछ ख़ाक कर देने पर आमादा है।

कानपुर की हिंसा में लगभग पचास सरकारी अधिकारी और पुलिसकर्मी सम्मिलित पाए गये। अभी कुछ दिन पहले सेना के जवानों को ले जा रहे वाहन चालक ने वाहन से कूदकर उसे पहाड़ी रास्ते से गहराई में नीचे गिरा दिया जिससे सेना के कई जवानों की पीड़ादायक मृत्यु हो गयी। जिहाद के इस स्वरूप से जूझने के लिए हमारे पास कौन सी व्यवस्था है?

नमाज और हिंसा

शुक्रवार की नमाज के बाद नमाजियों द्वारा अल्पवय बच्चों को आगे करके पत्थरबाजी की बढ़ती घटनाएँ नमाज के धार्मिक प्रभाव पर प्रश्नचिंह लगाती हैं। इन बच्चों को यह कैसी धार्मिक तालीम दी जा रही है? यह तालीम का प्रभाव इतना विषाक्त और हिंसक क्यों है?

जब धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग होने लगे, स्थितियाँ अनियंत्रित होने लगें और देश की सुरक्षा पर गम्भीर संकट मँडराने लगे तो ऐसी धार्मिक आज़ादी को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। हम इतने मूर्ख नहीं जो यह समझ न सकें कि नमाज के बहाने भीड़ को जुटाने और फिर हिंसक कार्यवाही करते हुये गजवा-ए-हिन्द के रास्ते पर दौड़ने की यह कवायद गैर-मुसलमानों के लिए कितनी विनाशकारी है।

दुर्भाग्य है कि सरकारें धर्म के इस विकृत और विनाशकारी स्वरूप को जानकर भी रोक पाने में असमर्थ हो रही है। जनता जानना चाहती है कि साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने वाले लोगों को अपना काम करने के लिए आज़ाद क्यों रखा गया है, क्यों नहीं इन पर कार्यवाही की जाती, जबकि वे खुल कर विनाश और हिंसा की धमकियाँ दे रहे हैं? यह ठीक उसी तरह है जैसे सिगरेट की डिब्बे पर वैधानिक चेतावनी की औपचारिकता पूरी करके सिगरेट का उत्पादन, विक्रय और पीने की खुली छूट। सरकार को समय रहते कड़े निर्णय लेने होंगे अन्यथा भारत को गृहयुद्ध की आग में जला देने की मुस्लिम नेताओं की धमकी को सच होने से रोका नहीं जा सकेगा। यह भी तय है कि हिन्दुओं की सामूहिक हत्या और पूरा हिंदुस्तान छीन लेने के बाद भी ये लोग हिंसा से बाज नहीं आने वाले। पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के उदाहरण हमारे सामने हैं।    

8 टिप्‍पणियां:

  1. भविष्य की भयंकरता सम्मुख है । आज के नेता कितने दिन ज़िंदा रहेंगे ?
    भुगतना तो हमारी आने वाली नस्ल को है । लोकतंत्र भी 25 -30 साल बाद दम तोड़ देगा ।

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  2. आपकी लिखी रचना सोमवार 13 जून 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  3. विचारोत्तेजक लेख।
    सादर

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  4. सही सटीक आरोप-प्रत्यारोप
    सादर..

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  5. सुखद आश्चर्य! सत्य के प्रति निष्ठा के लिए हमारे देश में अब केवल नारी शक्ति ही बची है। संगीता जी, श्वेता जी, यशोदा जी! पुरुष मौन क्यों है? यूँ, भारतीय दर्शन के अनुसार, स्त्री प्रसवधर्मिणी एवं सृजन शक्ति की स्वामिनी होती है, पुरुषों को यह सौभाग्य नहीं मिला, शायद इसीलिए वे सत्य का सामना नहीं कर पाते!

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  6. बहुत सटीक एवं विचाररणीय लेख ।

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    1. हम आभारी हैं, कृपया इन विचारों को जन-जन तक पहुँचाने में सयोग करें। सनातनियों के पूर्वजों की आत्माएँ प्रसन्न होंगी।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.